आज दिनांक १०.३.२३ कविता विषय स्वच्छन्द के अन्तर्गत मेरी रचना
नारी तू नारायणी:
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नारी तू साहस की देवी रहती तुझ मे शक्ति अपार,
तू ही चन्डी तू ही दुर्गा, तुझसे जीत न सके संसार।
ईश्वर ने अपने गुण दे कर तुझको पृथ्वी पर भेजा है ,
दया क्षमा ममता भी दे कर धरती का भार सहेजा है।
रचना न होती नारी की तो अस्तित्व धरा का न रहता,
नर ही नर दिखते धरा पर,कोई संरक्षक न रहता।
अबला नहीं प्रचण्ड शक्ति समाहित है नारी - दिल मे,
घायल हो जो स्वाभिमान नारी का ज्वाला धधके नारी-दिल मे।
आंसू उसकी पीड़ा दर्शाते मगर आत्मविश्वास भी दिखता आंखों मे,
अवसादग्रस्त होता कभी पुरुष तो सहारा उसको दिया है नारी ने ।
नारी है जग में नारायणी सदा सम्मान नारी को देना है
स्वयं वेदना सह कर भी नारी-सम्मान को प्रश्रय देना है।
नारी नहीं नारायण से कम नारी ईषा है अविजित है,
ज़रा स्वार्थ से हट कर देखो नारी प्रेम-पराजित है।
आनन्द कुमार मित्तल, अलीगढ़
Gunjan Kamal
12-Mar-2023 09:53 AM
सुंदर प्रस्तुति
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सीताराम साहू 'निर्मल'
11-Mar-2023 05:40 PM
शानदार
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Shashank मणि Yadava 'सनम'
11-Mar-2023 08:07 AM
सुन्दर सृजन
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